Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड में सियासत से महिलाओं को किया गया दरकिनार, चुनावी रण मे उतरी सिर्फ 4 महिलाएं | महिला अधिकार, सशक्तिकरण और महिलाओं से जुड़ी योजनाओं की बात जोरों से की जाती है लेकिन जब चुनाव मैदान में उतारने की बात आती है तो राजनीतिक दलों की प्राथमिकता बदल जाती है। लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल महिलाओं के अधिक से अधिक वोट लेने को जितने बेताब दिख रहे हैं, उनकी वैसी इच्छा या बेताबी उन्हें टिकट देने में नहीं दिखाई देती है। राज्य में कुल मतदाताओं में 48 फीसदी महिला मतदाता हैं, जो किसी को भी हराने या जिताने का दमखम रखती हैं, लेकिन राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर 55 प्रत्याशियों में से सिर्फ चार ही महिलाएं हैं।
पांच लोकसभा सीटों पर 55 प्रत्याशियों में से सिर्फ चार ही महिलाएं
साफ है कि राज्य की महिलाओं को सही मायने में अभी तक अपना हक नहीं मिल पाया है। राज्य की 40 लाख से अधिक महिला मतदाताओं को शायद अभी और इंतजार करना होगा। जहां तक राज्य की महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता का मसला है तो यह देखा गया है कि पुरुष मतदाताओं की तरह राज्य की महिलाएं भी मतदान करने के प्रति काफी सजग रही हैं।सामाजिक और पर्यावरणीय सरोकारों से जुड़े आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। इस कारण वे राजनीतिक मुद्दों की भी समझ रखती हैं। राज्य की 50 फीसदी पंचायतों का प्रतिनिधित्व महिलाओं के हाथों में है और वे कुशलतापूर्वक अपने दायित्व का निर्वहन कर रहीं हैं। लेकिन विधायिका के मोर्चे पर अपनी क्षमताओं और योग्यता के मामले में अभी वे राजनीतिक दलों में भरोसा नहीं बना पाई हैं। यही कारण है कि महिलाओं को बराबरी का हक देने का नारा बुलंद करने वाले राजनीतिक दल भी उन्हें प्रत्याशी बनाने से हिचक रहे हैं। इसकी तस्दीक लोकसभा सीटों पर उतरे प्रत्याशियों से हो रही है।
बता दें कि पहले लोकसभा चुनाव में टिहरी संसदीय सीट से कमलेंदुमती शाह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतने में सफल रहीं। इसके बाद नैनीताल सीट से ईला पंत और फिर राज्य गठन के बाद महज एक महिला माला राज्यलक्ष्मी शाह संसद पहुंच पाईं। सालों बाद भी महिलाओं को लोकसभा या राज्य विधानसभा में उनकी आबादी के अनुसार प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया।
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महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाने में प्रमुख दलों ने किया परहेज
उत्तराखंड में महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाने में प्रमुख दलों ने परहेज किया है। केवल टिहरी लोकसभा सीट इसका अपवाद है, जहां से प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा ने माला राज्यलक्ष्मी शाह पर दांव खेला है। गढ़वाल सीट से पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक ने सुरेशी देवी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया ने रेशमा और अल्मोड़ा से उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने किरन आर्या को मैदान में उतारा है।
महिलाओं को नहीं मिल पाया अपना हक
बड़े राजनीतिक दलों ने अब तक के चुनाव में जिन महिला प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा, उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और विरासत से जुड़ीं परंपराएं रही हैं। टिहरी संसदीय सीट पर माला राज्यलक्ष्मी शाह हों या फिर नैनीताल सीट पर ईला पंत। दोनों की राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है। जहां तक् टिहरी सीट का सवाल है, तो माला राज्यलक्ष्मी को प्रत्याशी बनाए जाने के पीछे राज परिवार का राजनीतिक प्रभाव रहा है। इसको आधार बनाकर रानी को भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनाया गया। राजनीतिक दलों की रीति-नीति को आम जन तक पहुंचाने और संगठन में महिलाओं की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद भी सियासत से महिलाओं को दरकिनार किया गया है.ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य की महिलाओं को सही मायने में अभी तक अपना हक नहीं मिल पाया है।
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